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परमाणु ऊर्जा: वैकल्पिक ऊर्जा की खोज तथा परमाणु बम के खतरे Atomic energy: the search for alternative energy and the dangers of nuclear bombs

           परमाणु ऊर्जा: वैकल्पिक ऊर्जा की खोज तथा परमाणु बम के खतरे  

                                                 




 
 

 वैज्ञानिकों के समक्ष ऊर्जा प्राप्त करने की विकट समस्या थी , जिसका उचित समाधान खोजने के लिये वे आतुर थे । यद्यपि पत्थर के कोयले , लकड़ी के ईंधन , मिट्टी के तेल और जल - प्रपातों से विद्युत उत्पन्न करके उसे प्राप्त किया जा रहा था , फिर भी एकान्त के क्षणों में जब वैज्ञानिक सोचता है कि यदि वे स्रोत समाप्त हो गये , तो क्या होगा ? वह चिन्तित हो जाता था । सर्वप्रथम इस क्षेत्र में पदार्पण किया जर्मनी ने । आरम्भ में जर्मनी को सफलता मिली , लेकिन युद्ध के दौरान जर्मन वैज्ञानिक केवल परीक्षात्मक सफलता ही प्राप्त कर सके । उनका अथक परिश्रम व्यवहारिक सफलता की मंजिल तक ले जाने में असफल रहा । लेकिन उद्देश्यपूर्ण परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता । जर्मनी के परीक्षणों से एक महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध हुई , जो बाद में बम निर्माण का अनिवार्य सिद्धान्त माना गया । ( यूरेनियम के नाभिक में अपार शक्ति संचित है तथा विखण्डन फ्रया यूरेनियम के परमाणु पर एक न्यूट्रॉन ( neutron ) के प्रहार से यूरेनियम का नाभिक दो भागों में विभक्त हो जाता है और अपार शक्ति के साथ दो अन्य न्यूट्रॉन को जन्म देता है ) । विज्ञान वेत्ता एल्बर्ट आइंस्टीन से प्रेरणा पाकर तत्कालीन राष्ट्रपति फेकलीन डॉ . रुजवेल्ट ने इस दिशा में कार्य करने का ऐतिहासिक निर्णय किया । आरम्भ में कार्य हेतु 6 हजार डालर की राशि के लिये गुप्त - प्रतिरक्षा कोष से आवश्यक अनुदान की व्यवस्था करने की स्वीकृति दी गयी । परिणामस्वरूप सन् 1940 में एक समिति का गठन किया गया , जिसमें विश्व - विख्यात वैज्ञानिक नील्स बोर एनरिको फर्मि और डॉ ० रोबर्ट ओपेनहाइमर विशेष उल्लेखनीय थे । विश्व - विख्यात भौतिक विज्ञान - वेत्ता डॉ . रोबर्ट ओपेनहाइमर को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया , जो परमाणु बम का जनक माना जाता है । जर्मनी के अतिरिक्त यूरोप और अमेरिका के प्रमुख वैज्ञानिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इसी महान् कार्य से सम्बन्धित थे । अन्त में वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम व सामूहिक प्रयासों के सम्मुख निराशा को आत्म - समर्पण करना पड़ा । परमाणु में अतिनिर्हित महाशक्ति के भी विकास की विधि का उद्भव किया और 13 जौलाई , 1945 को एलामोगेडरो रेगिस्तान में बम ने का परीक्षण कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ । ठीक पाँच बजकर तीस मिनट पर इस ऐतिहासिक दिवस की सवेरे चकाचौंध ज्वाला के साथ गगन भेदी विस्फोट हुआ ( ज्वाला की तीव्रता सूर्य से भी अधिक थी ) । कुकुरमुत्ते के आकार का एक विशालकाय बादल उठा , जो लगभग 40000 फुट ऊँचा था । 9 मील तक झुलसाने वाली गर्मी थी और एक मील की त्रिज्या के अन्दर जीव - जन्तु काल के दुःखद शिकार हो चुके थे । परीक्षण की सफलता से प्रोत्साहित होकर मानव ने मानव का संहार करने हेतु दो बमों का निर्माण करने का निश्चय किया । 6 अगस्त , 1945 का दिवस वह करुण दिवस है , जो मानव के अविवेक और विजय के उन्माद से संहार की प्रबल इच्छा की अमिट छाप करोड़ों हृदयों पर छोड़ गया । मित्रराष्ट्रों ने जापान के सम्पन्न नगर हिरोशिमा पर पहला बम गिराकर समस्त संसार को स्तव्य कर दिया ।

                                       


 बम का प्रलयकारी प्रभाव हुआ और तीन लाख जनसंख्या का नगर क्षण भर में नष्ट - भ्रष्ट हो गया । एक बम के दृश्यों से पिपासा शान्त न हुई , बल्कि विजय - वाहिनी को शीघ्रातिशीघ्र आलिंगन करने के मद में 9 अगस्त को दूसरा बम नागासाकी पर गिराया गया । विज्ञान ने मानव के आत्मबल एवं आत्मविश्वास पर घातक प्रहार किया । 

               क्रूरता के सम्मुख मानव के साहस व शौर्य को पराजित होना पड़ा । परिणामस्वरूप आत्मिक शकि का धनी जापान भौतिक दृष्टि से शक्तिहीन हो गया और पतन को अवश्यम्भावी जानकर आत्मसमर्क करने का अन्तिम विकल्प स्वीकार करने को वह विवश हुआ । हिरोशिमा तथा नागासाकी पर बम गिरने से समस्त विश्व अत्यधिक भयभीत व धुव्य है उठा । विध्वंसकारी परिणामों से केवल साधारण नागरिक ही नहीं , अपितु वैज्ञानिक भी चिन्तित में बम की ध्वंसलीला से बम के जन्मदाता डॉ . रोबर्ट ओपेनहाइमर की अन्तरात्मा अनुताप की ती ज्वाला में दग्ध होने लगी । विश्वबन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत मानवता के इस अनुपम सेवर ने स्वयं को निर्दोष व्यक्तियों की शोचनीय मृत्यु का उत्तरदायी मानकर अपने पद से त्याग - पत्र देव मानव - प्रेम का अमर सन्देश दिया । अफसोस । विनाशकारी अस्त्रों की भूख का भूखा मानव उन मानवता के पुजारी का निःस्वार्थ त्याग अपने स्वार्थों में भूल गया । जनमत के प्रबल विरोध । बावजूद कुछ राष्ट्र अपनी सुरक्षा की ओट में तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के एकाधिकार की समा के बहाने इसके निर्माण कार्य में संलग्न रहे । सोवियत संघ प्रथम राष्ट्र था , जिसने 1949 में परम बम का सफल परीक्षण करके अमेरिका के एकाधिकार की चुनौती को समाप्त किया । इंगलैण्ड 1952 में तथा फ्रांस ने 1960 में सहारा के मरुस्थल में सफल परीक्षण करके परमाणु बम का की सदस्यता प्राप्त की और अप्रत्यक्ष रूप से आणविक दौड़ को प्रोत्साहित किया । 1964 अक्टू माह में जनवादी चीन ने अणु परीक्षण करके साम्यवादी शिविर में अराजकता को जन्म दिया 3 अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को अपनी वैज्ञानिक प्रतिमा के माध्यम से प्रभावित करने का प्रयास किय अमेरिका ने एक कदम और आगे बढ़ाया । नवम्बर 1952 में उसने हाइड्रोजन बम का सम परीक्षण करके संहारक शक्ति में वृद्धि की । इस बम की संहारक शक्ति हिरोशिमा पर गिराये बम की संहारक शक्ति से एक - सौ पचास गुना अधिक थी । सोवियत संघ भी निरन्तर जर्जा , बाधाओं के विपरीत प्रगतिशील था । 1956 में हाइड्रोजन बम का परीक्षण करके सोवियत साँ इस धारणा को जन्म दिया कि अमेरिका व सोवियत संघ में आणविक दौड़ आरम्भ हो चुकं जो भावी विनाशकारी घटनाओं का केवल संकेत मात्र ही नहीं है , बल्कि मानव सभ्यता का चरण प्रतीत होती है । परमाणु बम में तो भारी परमाणुओं को तोड़कर ऊर्जा प्राप्त की जाती थी , किन्तु हाइड़ बम में छोटे परमाणुओं को परस्पर सम्मिलित करके परमाणु बनाया जाता है और इस प्रक्रिम और भी अधिक ऊर्जा मुक्त हो जाती है । इन शस्त्रों का प्रयोग बहुत ही अमानुषिक और न होता है । इनसे केवल निरीह और निरपराध लोय ही नहीं मारे जाते या घायल होते हैं ,
                                     

          The Earth appears blue from space, it has life on it (Blue Planet)

                                                    

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