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नालंदा विश्वविद्यालय भारत का प्राचीन शिक्षा केंद्र Nalanda University Ancient Education Center of India

                              नालंदा विश्वविद्यालय भारत का प्राचीन शिक्षा केंद्र 

                                    




 नालंदा विश्वविद्यालय - नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना  वैसे समय में हुई थी जब धर्म तथा शिक्षा में अंधविश्वास का भी समावेश हो गया था । इसकी विशेषता थी कि यहाँ धर्मनिरपेक्ष भाव से शिक्षा दी जाती थी । शासकों से इसे लगभग 200 गाँव दान में मो मिले थे । सरकारी अनुदान तथा विदेशी सहायता से इसका खर्च चलाया जाता था । गुप्त शासकों के अलावा इसे हर्षवर्द्धन तथा पाल शासकों ने संरक्षण दिया था । 11-12वीं सदी में राजकीय संरक्षण घटने के कारण इसकी शिक्षा के स्तर में गिरावट आई । माना जाता है कि बंगाल विजय के दौरान बख्तियार खिलजी ने जलाकर इसे नष्ट कर दिया था । तक्षशिला के समान नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक महत्त्वपूर्ण शिक्षण संस्थान था । इसकी स्थापना गुप्तकाल में हुई थी । चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग यहाँ अध्ययन के लिए आए थे ।

                                                      भगवान् बुद्ध और बौद्ध धर्म  

इन दोनों ने इस विश्वविद्यालय का विस्तारपूर्वक विवरण दिया है । गुप्तकाल के अभिलेखों से भी इस विश्वविद्यालय की जानकारी मिलती है । स्रोतों से ज्ञात होता है कि नालंदा विश्वविद्यालय का भवन भव्य था । इसमें अध्ययन के कई केंद्र थे । इसमें कई पुस्तकालय भी थे । यहाँ देश - विदेश से विद्यार्थी पढ़ने आते थे । इसमें प्रवेश पाने के लिए छात्रों को कड़ी प्रवेश परीक्षा देनी होती थी । नालंदा विश्वविद्यालय एक बौद्ध विहार ( मठ ) था । इसमें मुख्यतः बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी । साथ ही वेद और राज्य तर्कशास्त्र , व्याकरण , चिकित्साविज्ञान , न्याय , योग आदि का अध्ययन भी छात्रों को करना होता था । समय - समय पर छात्रों के बीच वाद - विवाद प्रतियोगिता कराई जाती थी । इसमें अनेक आचार्य ( शिक्षक ) पढ़ाते थे । यहाँ कई मुहरें मिली हैं । अधिकांश मुहरों पर धर्म - चक्र अंकित है । स्रोतों से ज्ञात होता है कि लगभग 700 वर्षों तक यह एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना रहा । यहाँ शिक्षकों एवं छात्रों की कुल संख्या लगभग 10,000 थी , जिसमें 1,500 शिक्षक थे । छात्र छात्रावास में रहते थे । शिक्षा नियमित तथा व्यवस्थित रूप से दी जाती थी । शीलभद्र यहाँ के एक विख्यात शिक्षक थे । आज के विश्वविद्यालयों की तरह ही सुबह से शाम तक व्याख्यान दिए जाते थे । शिक्षकों से छात्र प्रश्न पूछ सकते थे । शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें डिग्री भी दी जाती थी ।,

                                                                  


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