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हड़प्पा मोहनजोदड़ो नगर सभ्यता Harappan Mohenjodaro city civilization

                                               हड़प्पा मोहनजोदड़ो नगर सभ्यता

                              

       

 



 आरंभिक शहर भारत का सबसे प्राचीन नगर हड़प्पा ( वर्तमान पाकिस्तान में ) को माना गया है । इसकी जानकारी 19 वीं सदी में मिली जब ब्रिटिश सरकार ने पंजाब में रेल लाइन बिछाने का कार्य आरंभ किया । रेल लाइन बिछाने के क्रम में भूमि की खुदाई करते समय इंजीनियरों को अच्छी किस्म की ईंटें मिलीं । उस समय इन ईंटों का उपयोग लाइन बिछाने में किया गया । लगभग सात दशक बाद ( 1920 के दशक में ) पुरातत्त्वविदों ने रावी नदी के किनारे स्थित स्थानों की खुदाई की तो उन्हें एक प्राचीन शहर के खंडहर का पता लगा । यह खंडहर प्राचीन शहर हड़प्पा का था । इस क्षेत्र के अलावा उन्होंने सिंध में मोहनजोदड़ो ( वर्तमान पाकिस्तान में ) की भी खुदाई की । मोहनजोदड़ो के बाद उन्होंने कई अन्य क्षेत्रों , जैसे रुपर ( पंजाब ) , बनवाली ( हरियाणा ) , कालीबंगा ( राजस्थान ) तथा गुजरात के कई स्थानों की खुदाई की ।

                                                                   


  

 खुदाई किए गए इन सभी स्थानों से जो वस्तुएँ तथा इमारतों के अवशेष मिले वे हड़प्पा में पाई गई वस्तुओं के समान थे । इसी समानता के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में खुदाई किए गए सभी स्थानों की सभ्यता को उन्होंने हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया । पुरातत्त्वविदों क अनुसार , यह सभ्यता प्रथम नगराकरण लगभग 450 साल पहले भारत के उत्तर - पश्चिम क्षेत्र । विकसित हुई थी । आज के शहर की तरह हड़प्पा शहर गांव से आधक गत का शहर की अपेक्षा गाँव का क्षेत्रफल कम होता था ।

                                                         



                        


  प्राचीनकाल में गांव के लोग अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुएं बनाते थे । यूकि एक गाँव की आवश्यकता एक ही प्रकार की होती थी इसलिए वहाँ के निवासी एक हीं तरह की वस्तुएं बनाते थे । इसके विपरीत , शहर के लोगा की आवश्यकताएं भिन्न - भिन्न होती थी , इसलिए शहर के लोग कई तरह के व्यवसाय करते थे । इन कारणों से शहर में प्रशासनिक व्यवस्था  का विकास हुआ । इसके साथ एक भाषा एवं एक लिपि का व्यवहार होने लगा । एक भाषा के प्रयोग के कारण सामूहिक धार्मिक आयोजन होने लगे ।

                                   




                                                                  



 इससे एक प्रकार की संस्कृति का विकास हुआ । इस तरह के व्यवस्थित जीवन के विकास की प्रक्रिया को सभ्यता का विकास कहा जाता है । सभ्यता के विकास के कुछ अन्य कारण भी थे , जैसे मनुष्य के द्वारा चिकनी मिट्टी का उपयोग करना । उसने पाया कि भट्ठी में चिकनी मिट्टी को पकाने से मिट्टी में स्थित कच्ची धातु पिघल जाती है और बची हुई मिट्टी पिघली धातु से मिलकर कठोर बन जाती है । धातु - मिश्रित मिट्टी से अच्छे बरतन तथा अन्य वस्तुएँ बनाए जा सकते है । इससे सभ्यता के विकास में मनुष्य और आगे बढ़ा । बाद में ताँबा के प्रयोग ने सभ्यता को और विकसित किया । 

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प्रारंभ में मनुष्य केवल पत्थरों के औजार बनाता ध्या । बाद में वह पत्थर तथा ताँबा दोनों का उपयोग औजार बनाने में करने लगा । इस काल को ताम्र - प्रस्तर काल ( Chalcolithic Age ) कहा जाता है । इसी काल में मनुष्य पत्थर के स्थान पर कांसा का उपयोग करने लगा । अन्य कच्ची धातुओं को मिलाकर मनुष्यों ने टिन तथा ताँबा की खोज की । इन दोनों धातुओं को मिलाकर उसने काँसा बनाना सीखा । इन खोजों से मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए तथा वह सभ्यता के विकास में और आगे बढ़ा । इन परिवर्तनों के कारण एक काल का अत तथा दूसरे काल का प्रारंभ हुआ । मनुष्य ने काँसे के कई तरह के औजार बनाए । 

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