भगवान् बुद्ध और बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे । उनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ था । उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ तथा गौतम था । उनके पिता शुद्धोदन शाक्य कुल के एक सरदार थे । उनकी माता का नाम माया देवी था । उनका विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से हुआ था । उनके पुत्र का नाम राहुल था । बुद्ध के अनुसार , सभी दुखों एवं सामाजिक बुराइयों का कारण लोगों की इच्छाएँ हैं ।
उन्होंने आम लोगों की भाषा में दुखों से छुटकारा पाने के उपाय बताए । वे मानते थे कि दुखों से छुटकारा पाकर मनुष्य निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है । प्रारंभिक जीवन - सिद्धार्थ बचपन से शांत स्वभाव के थे राजकुमार होने के नाते उनका जीवन सुखमय था । उन्हें कोई काम नहीं था । कहा जाता है कि एक वृद्ध , एक बीमार तथा एक मृत को देखकर वे बहुत दुखी हुए थे । एक योगी को देखकर उन्हें ल कि सुख - सुविधाओं का त्यागकर सभी दुखों को दूर किया सकता है । 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया । वर्षों तक वे कष्ट - निवारण के उपाय ढूँढ़ने हेतु एक स्थान से ह स्थान तक घूमते रहे । इस दौरान उन्होंने बिना भोजन - पानी । अपने शरीर को कष्ट दिया । कड़ी धूप , भारी वर्षा तथा ठंड बना वस्त्र के वे तपस्या करते रहे । अंत में , बोधगया में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ।जीवन के अंत तक वे अपने धर्म और ज्ञान का प्रचार करते रहे ।35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध ( जिसे ज्ञान प्राप्त हो ) कहलाने लगे । उनकी मृत्यु अस्सी वर्ष की उम्र में कुशीनगर ( पूर्वी उत्तर प्रदेश ) में हुई । मुख्य उपदेश - बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया । इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है । करीब 40 वर्षों तक उन्होंने सामान्य लोगों की भाषा में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया । उनके उपदेश सरल थे और आम भाषा में होने के कारण लोगों में बहुत लोकप्रिय हुए । उन्होंने कहा कि मनुष्य की असीमित इच्छाओं के कारण उसे इतने दुख एवं कष्ट होते हैं । अपनी इच्छाओं पर काबूकर लेने से सारे कष्ट दूर हो सकते हैं । मनुष्य को न तो अधिक सांसारिक सुख के लिए प्रयास करना चाहिए और न ही पूर्ण रूप से संन्यासी बन जाना चाहिए । मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य सारे कष्टों को दूर कर सकता है । कष्टों को दूर करने के लिए उन्होंने आठ मार्ग ( आष्टांगिक मार्ग ) बताए । बुद्ध ने समानता , प्रेम एवं आदर के उपदेश दिए । इस कारण उन्होंने जाति - प्रथा के साथ - साथ वर्ण - व्यवस्था का भी विरोध
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