वर्द्धमान महावीर - जैन धर्म
वर्द्धमान महावीर - जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थकर महावीर थे । इनका जन्म वैशाली के निकट कुंडग्राम में 540 ई.पू. में एक क्षत्रिय कुल में हुआ था । बुद्ध के समान इनका प्रारंभिक जीवन सुखमय था । परंतु , 29 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर त्याग दिया । बारह वर्षों तक वे जहाँ - तहाँ भटकते रहे । 42 वर्ष की अवस्था में उन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ । वे जिन ( विजेता ) कहलाने लगे और उनके अनुयायी जैन कहलाए । महावीर चौबीसवें तीर्थकर ( सत्य खोजनेवाला ) थे । उनसे पहले तेईस तीर्थकर हुए । 72 वर्ष की उम्र में राजगीर के निकट पावापुरी में उनका देहांत हुआ । प्रारंभिक जीवन एवं उपदेश - बचपन में महावीर वर्द्धमान कहलाते थे । उनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था । उन्हें एक पुत्री थी । बुद्ध की तरह वे भी अपना घर - परिवार छोड़कर संन्यासी बन गए । लंबी तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ ।
महावीर के उपदेश - महावीर के अनुसार , मनुष्य को आनंद के लिए प्रयास करना चाहिए । तीन मार्ग अपनाकर इसकी प्राप्ति की सकती है । ये है - सम्यक् दर्शन , सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् आचरण । जैन धर्म इस त्रिरत्न मार्ग पर आधारित है । महावीर ने जा का पालन करने का आदेश दिया । पाँच महाव्रतों - अहिंसा , सत्य , अपरिग्रह , अस्तेय तथा ब्रह्मचर्य महावीर ने जैनियों के लिए संघ की स्थापना की थी , जिसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों को शामिल करने की अनुमति दी थी । इन्हें चार वर्गों में बाँटा गया था — भिक्षु , भिक्षुणी , श्रावक तथा करने का अधिकार होता था । श्राविका । इन्हें गार्हस्थ्य जीवन में रहकर भी जैन धर्म का पालन जैन धर्म की देन- यद्यपि बौद्ध धर्म की तुलना में जैन धर्म का प्रसार कम हुआ , परंतु इसने भारतीय संस्कृति को प्रभावित किया । जैन विद्वानों ने लोक भाषाओं में ग्रंथों की रचना की थी । इससे लोक साहित्य का विकास हुआ । जैनियों ने कई भव्य मंदिर बनवाए थे , जैसे - आबू पर्वत का मंदिर , दिलवाड़ा का मंदिर , पार्श्वनाथ का मंदिर , शांति स्तूप , पावापुरी का जलमंदिर तथा गिरनार का मंदिर आदि । इन्होंने अनेक मूर्तियाँ भी बनवाई थी । इसमें प्रसिद्ध है गोमतेश्वर की विशाल प्रतिमा ( बेलगोला मैसूर में ) । जैन ग्रंथों पर सुंदर चित्रकला के भी नमूने मिलते हैं । बौद्ध तथा जैन संघ - बुद्ध तथा महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर उस समय बहुत सारे लोगों ने सांसारिक जीवन त्याग दिया और वे इन उपदेशों के प्रचार - कार्य में लग गए । ऐसे लोगों के लिए कई बौद्ध तथा जैन संगठन स्थापित किए गए थे । ये संघ कहलाते थे । बौद्ध संघ विहार ' भी कहलाता था । बौद्ध संन्यासी भिक्षु ( पुरुष ) तथा भिक्षुणी ( स्त्री ) कहलाते थे ।वे कर्म में विश्वास करते थे । उनका मानना था कि प्राप्त ज्ञान का एक निम्न तथा गरीब व्यक्ति भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है । बुद्ध के समान उन्होंने अहिंसा का उपदेश दिया और अपने अनुयायियों को किसी जीव की हत्या करने से मना किया । झूठ बोलना , चोरी करना या हत्या करने को गलत बताया । उन्होंने लोगों को एक सादा तथा पवित्र जीवन बिताने के लिए कहा । जैनियों को सांसारिक सुखों से दूर रहने के लिए कहा । उन्हें वस्त्र पहनने से भी मना किया । बाद में जैनियों ने सफेद वस्त्र धारण किया । महावीर ईश्वर तथा धार्मिक अनुष्ठानों को नहीं मानते थे । महावीर के समर्थकों की संख्या बहुत बढ़ी , क्योंकि वे लोगों की भाषा प्राकृत में उपदेश देते थे । उन्होंने मगध , कोशल , विदेह तथा उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में घूम - घूमकर अपना संदेश लोगों तक पहुँचाया । इन क्षेत्रों के अलावा जैन धर्म गुजरात , राजस्थान तथा दक्षिण भारत में भी लोकप्रिय हुआ ।
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