उपनिषद: भारतीय आचार संहिता
वर्द्धमान महावीर - जैन धर्म
उपनिषद - बुद्ध तथा महावीर ने जीवन के दुखों एवं कष्टों को दूर करने के उपाय बताए । उस समय कुछ अन्य चिंतकों ने भी इन गम्भीर विषयों पर चिंतन किया । उन्होंने यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठान के लाभ तथा मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानने की कोशिश की । उनके ये विचार हम उपनिषद में पाते हैं । करीब 108 उपनिषद हैं । इसमें प्रश्न एवं उत्तर के द्वारा गुरुओं ने अपने शिष्यों को इन गंभीर विषयों पर अपने विचार दिए हैं । यह ग्रंथ उत्तर वैदिक काल में रचा गया था । यह ग्रंथ हिंदू दर्शनशास्त्र का एक अभिन्न भाग है ।
उपनिषद का अर्थ है ' गुरु के निकट बैठना ' । इन ग्रंथों में वैदिक देवताओं तथा धार्मिक कर्मकांडों को विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है । इसमें ब्रह्म को सबसे ऊँचा माना गया है । वैदिक मान्यता थी कि मृत्यु के बाद मनुष्य का शरीर नष्ट हो जाता है , परंतु उसकी आत्मा नहीं मरती है । आत्मा का जन्म बार - बार होता है । उपनिषद काल में स्त्रियां इस तरह की चर्चाओं में भाग लेती थी । दक्षिण भारत के विचारक शंकराचार्य ने अपने विचारों से उपनिषद के दर्शन एक सिद्धांत का विकास किया । याज्ञवल्क्य तथा उनकी पत्नी मैत्रयी । मध्य हुई चर्चा उल्लेखनीय है । दोनों ने आपसी वार्तालाप के दौरान माना था कि धन या संपत्ति की बजाय दूसरों की भलाईकर महानन प्राप्त की जा सकती है और ज्ञान से ब्रह्म को प्राप्त किया । सकता है । क . जीवन की चार अवस्थाएँ - उपनिषद के अनुसार , एक उच्चवर्गीय व्यक्ति के जीवन की चार अवस्थाएँ होती हैं । ये चार आश्रम कहलाती हैं । पहला आश्रम ब्रह्मचर्य का होता है । इसमें व्यक्ति एक विद्यार्थी होता है । दूसरा आश्रम गृहस्थ जीवन है , जिसमें व्यक्ति पारिवारिक जीवन बिताता है । तीसरा आश्रम वानप्रस्थ का है । इसमें व्यक्ति घर - परिवार त्यागकर वनों में जाता जहाँ वह ध्यान में अपना समय बिताता है । अंतिम आश्रम संन्यासी जीवन होता है , जिसमें व्यक्ति की कोई इच्छा नहीं होती है । वह सब कुछ त्याग देता है । इन चारों आश्रमों से गुजरकर व्यक्ति अपना जीवन सुखी बना सकता है ।
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