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सिनेमा(चलचित्र का अविष्कार) Cinema (Innovation of the movie)

                                                   सिनेमा(चलचित्र का अविष्कार)

                                     


    

   चलचित्रों का आविष्कार अमेरिका निवासी  एडीसन ने सन 1890 में किया था । अनेक स्थिर चित्रों को एक निश्चित गति से तीव्र प्रकाश द्वारा श्वेत पट पर प्रक्षिप्त कर इसकी सृष्टि की जाती थी ।   किन्तु उनमें गतिशीलता मनुष्य के समान होती थी । सन् आरम्भ हुआ । उपसंहार ।भारतवर्ष में सर्व प्रथम सन् 1913 में हरिश्चन्द्र नामक फिल्म बनी थी परन्तु ये चलचित्र मूक और अवाक् ( न बोलने वाले ) थी 

                                                               

           

1928 में सवाक् ( बोलने वाले ) चलचित्र का श्रीगणेश हुआ और इस परम्परा की सबसे पहली फिल्म ' आलमआरा ” थी , जो    सन् 1931 में बम्बई की इम्पीरियल फिल्म कम्पनी ने बनाई थी । सहसा जनता का ध्यान इस ओर अधिक आकृष्ट हुआ । 

                                                                    

         

                                                    Swami Vivekananda The Great Saint 

सवाक् चलचित्रों ने प्रारम्भ में अच्छे नायकों व वादकों को अपनी ओर आकृष्ट किया । परिणामस्वरूप सुप्रसिद्ध गायक और वादक चलचित्रों में कार्य करने लगे और चलचित्रों की प्रतिष्ठा बढ़ी , जिससे यह व्यवसाय और भी अधिक उन्नति की ओर अग्रसर हुआ । पारिश्रमिक के आधिक्य के कारण प्रतिभा सम्पन्न संचालकों तथा कुशल कलाकारों का सहयोग मिलने लगा । कई प्रसिद्ध कम्पनियाँ खुली , जिनमें इम्पीरियल , न्यू ध्येटर , रणजीत और प्रभात कम्पनियों ने जनता को अत्यधिक मुग्ध किया । निर्देशक व्ही शान्ताराम तथा अभिनेता चन्द्रमोहन ने अपनी कुशल कलाओं से चलचित्र - प्रेमियों को बहुत प्रभावित किया । देश में जिस तीव्रगति से चलचित्रों का प्रचार हुआ , इससे उनकी सर्वप्रियता स्पष्ट है । इस व्यवसाय में अमेरिका का प्रथम स्थान है , तो भारतवर्ष का द्वितीय । प्रेक्षकों की संख्या वृद्धि के साथ - साथ सिनेमा - गृहों का निर्माण कार्य भी उत्तरोत्तर वृद्धिशील है । इसका मुख्य कारण है भारतवर्ष में मनोविनोद के साधनों का अभाव तथा शिक्षा की न्यूनता के कारण रुचि - वैभिन्नय की कमी । परन्तु इतना अवश्य है कि कम व्यय और कम श्रम से मानव अपने जीवन के संघर्षमय क्षणों में से कुछ क्षण प्रेक्षक गृह में बैठकर बिता देता है और आत्मानुभूति में हंस और रो भी देता है । इन चलचित्रों की उपयोगिता जहाँ मनोरंजन के लिए है वहाँ दूसरी ओर ज्ञान - संवर्धन के लिए भी इनका महत्त्व कम नहीं है । 

                                                                          


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