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स्वामी विवेकानंद महान संत Swami Vivekananda The Great Saint

                 स्वामी विवेकानंद महान संत  Swami Vivekananda The Great Saint 

                                




स्वामी विवेकानंद, नरेंद्रनाथ दत्ता के रूप में पैदा हुए 19 वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी, रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य थे। वह सार्वभौमिक धर्म को बढ़ावा देने, अस्पृश्यता को दूर करने और जनता को शिक्षित करने के लिए प्रसिद्ध है।

                                                                     
                       


 उन्होंने वैदिक परंपराओं को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया, और भारतीय दर्शन और संस्कृति के लाभों का प्रचार किया। एक नारीवादी के रूप में, विवेकानंद ने महिलाओं की भूमिका को महिमामंडित किया।

                               




वह महिलाओं को शक्ति (सृजन करने वाली शक्ति) मानते थे। उनका मानना था कि एक महिला को उचित शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। यदि महिलाओं की पूरी आबादी शिक्षित है, तो पूरा देश शिक्षित होगा और इसी तरह, उत्थान होगा। एक संत के रूप में देखे जाने पर, स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था कि गरीबों को जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं दी जानी चाहिए - भोजन, कपड़े और आश्रय। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिससे उनके अनुयायियों को गाँवों में काम करने और निराश्रितों और वंचितों को सामाजिक सेवा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इस  हिंदू भिक्षु ने भारतियों को प्रेरित किया .

वेदांत का आदर्श - स्वामीजी के द्वारा भारतीय जनजीवन का जो पुनर्गठन हुआ , उसका आदर्श वेदातिक है . उन्होंने वेदांत के महान तत्वों को केवल एकांत में चर्चा का विषय नही बनाए रखा वह अरण्य और गुफा , कंदराओं का विषय न होकर हमारी कर्मभूमियों में अवतरित हो गया , सदियों से दासता कामृखला से पीड़ित.इस आत्म विस्मृत जातिको उन्होंने झकझोरकरजगाया . उनकी प्राणप्रद शक्ति - संचारिणी वाणी को नव्यभारत ने नए सिरे से आत्मसात् किया . विवेकानन्द की प्रेरणा से जाग्रत भारतवासियों को भविष्य में चलकर लोकमान्य तिलक वमहात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता आन्दोलन का अमृतमय संदेश मिला . भारत में मानव जाति की सर्वागीण उन्नति के अहिंसा , नाभिकीय अस्त्र पर अंकुश और रंगभेद की नीति के विरोध में विश्व - मंच पर जो स्वर लिए आज जो अनथक श्रम हो रहा है , स्वतन्त्र भारत के पाँचो प्रधानमंत्रियों ने गुट - निरपेक्षता , निनादित किया है . एक स्वप्नदृष्टा ऋषि की भाँति स्वामी जी ने आज से अनेक वर्ष पूर्व ही उसकी घोषणा कर दी थी उन्होंने कहा था कि अब समय आ रहा है , जब भारत सबका नेतृत्व करेगा स्वामी जी का प्रत्येक भाषण नव्य भारत का उद्बोधन मंत्र था . विवेकानन्द ने ही हमारे अंदर स्वदेश प्रेम का बीज अंकुरित किया . उन्होंने एकांत में बैठकर श्रवण , मनन और निदिध्यासन ' का आदेश न देकर कहा कि किसी अदृश्य देवता की खोज में न भटक कर , अपने सामने उपस्थित विराट देशमातृका का वंदेमातरम् की ध्वनि से आह्वान करना चाहिए 

रामकृष्ण मिशन की स्थापना- स्वामी विवेकानन्द ने सन् 1899 में कलकत्ता के पास बेलूर नामक गंगा - तटवर्ती ग्राम में रामकृष्ण मिशन का मुख्य केन्द्र स्थापित किया . उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा पाकर देश - विदेश के अनेक भक्तों ने आकर उनका शिष्यत्व ग्रहण किया . उन दोनों द्वारा प्रदत्त धनराशि से एक ट्रस्ट की स्थापना हुई और धीरे - धीरे भारत के सभी प्रमुख नगरों में रामकृष्ण मिशन के केन्द्र स्थापित हो गए . भारत के प्राचीन पंथी , कट्टरवादी वेदांत के पंडितों ने विवेकानन्द की कर्ममुखी साधना की समालोचना की . उनके अनुसार यदि हम वेदांत का सार , इस श्लोक को मान लें - ' ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या , जीव ब्रह्मैव नापरः , तो संसार को माया मानकर हमें निष्क्रिय हो जाना चाहिए और कर्म संन्यास का मार्ग अपनाना चाहिए न कि ' कर्मयोग ' का . विवेकानन्द के समालोचक , एक अध्यापक ने उनसे कहा था कि , ' दान और सेवा - व्रत भी मायिक ( माया से उत्पन्न ) है , और हमारा प्रयास होना चाहिए- ' मायातीत स्थिति की उपलब्धि करना अर्थात् मोक्ष ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए . ' इस प्रश्न के उत्तर में स्वामी विवेकानन्द ने व्यंग्यात्मक शब्दों में कहा था कि ' ऐसी स्थिति में तो ' मोक्ष , भी ' माया ' है . मोक्ष का प्रयास ही क्यों करें ? वेदांत कहता है कि आत्मा नित्य - मुक्त है , तब मुक्ति किसकी होगी ? विवेकानन्द द्वारा रूपायित नय्य - वेदांत - स्वामी जी को पलायनवादी मार्ग कभी भी उचित नहीं लगा था उन्होंने अपना समग्र जीवन शिव ज्ञान में जीव की सेवा में समर्पित किया था . उनकी अविस्मरणीय उक्ति यह थी कि , एक व्यक्ति की मुक्ति के लिए यदि हमें कोटि जन्म , कुत्ते का शरीर भी धारण करना पड़े तो मैं प्रस्तुत हूँ यह अपूर्व उदारता उनके गुरु युगावतार परमहंस श्री रामकृष्ण के अमूल्य उपदेश का ही फल थी . 


                                                


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