किसान मंडी और MSP Kisan Mandi and MSP
वर्तमान व्यवस्था - किसान अपने अतिरिक्त उत्पाद का कई प्रकार से विक्रय करता है । पहला और सामान्य तरीका यह है कि किसान अपने अधिशेष ग्राम के साहूकार या महाजन या व्यापारी को बेचता है । व्यापारी स्वयं भी कृषि उत्पाद का क्रय कर सकता है या किसी बड़े वाणिज्यिक फर्म या व्यापारी का अभिकर्ता ( एजेंट या बिचौलिया या दलाल ) बनकर भी फसल खरीद सकता है । किसान अपने उत्पाद को साप्ताहिक या अर्द्धसाप्ताहिक ग्राम बाजारों , जिन्हें हाट कहते हैं , में बेच देते हैं । फिर , छोटे तथा बड़े कसबों की मंडियों में क्रय - विक्रय किया जाता है । मंडियाँ गाँवों से दूर स्थित हो सकती हैं और किसानों को अपनी उपज मंडी तक ले जाने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ सकते हैं । मंडियों में दलालों द्वारा किसान अपनी फसल को आढ़तियों को बेचते हैं । ये आढ़तिये , जो थोक व्यापारी होते हैं , अपनी खरीदी गई फसल या तो फुटकर विक्रेताओं ( रिटेलर ) को या आटे अथवा चावल की मिलों या इनका प्रोसेसिंग ( प्रसंस्करण ) करनेवाली इकाइयों को बेच देते हैं । कृषि विपणन के दोष ( कृषि उत्पाद पर विचौलियों का प्रभाव ) भारत में कृषि विपणन की दशा संतोषजनक नहीं है । किसान बहुत निर्धन एवं अशिक्षित हैं । उन्हें अपनी उपज के क्रय - विक्रय के संबंध में पूर्ण जानकारी भी उपलब्ध नहीं रहती । सबसे पहले तो उनके पास अपनी उपज का संग्रह करने के लिए गोदामों की सुविधा होनी चाहिए । मॅझोले और बड़े किसानों के लिए तो इसका अभाव बहुत बड़ी मजबूरी है । फलस्वरूप , वे अपनी अधिशेष फसल को शीघ्र बेच देने के लिए मजबूर होते हैं । दूसरे , किसान इतना निर्धन और ऋणग्रस्त हैं कि वे अपने ऋणों का भुगतान करने के लिए अपनी उपज महाजन या व्यापारी को बेचने के लिए बाध्य हो जाते हैं । इस प्रकार के बाध्य - विक्रय के कारण औसत किसान की कमजोर स्थिति और भी अधिक कमजोर हो जाती है । तीसरे , ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधाएँ इतनी असंतोषप्रद हैं कि समृद्ध किसान भी , जिसके पास काफी अधिशेष उपलब्ध होता है , मंडियों में जाना नहीं चाहते । फिर , मंडियों में परिस्थितियाँ इतनी बुरी हैं कि किसान को मंडियों में जाकर काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है , तब वे अपनी फसल को बेच पाते हैं । इसके अतिरिक्त सौदा - प्रणाली ऐसी है कि इससे किसान को फसल का उचित लाभ नहीं मिल पाता । किसान आढ़तिये को अपनी फसल बेचने के लिए दलाल ( बिचौलिये ) की मदद लेने को बाध्य होते हैं ।
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दलाल और आढ़तिये खुले रूप से नहीं , बल्कि गुप्त रूप से सौदा करते हैं । दलाल आमतौर पर आदतिये से मिला होता है और परिणामतः जो कीमत तय की जाती है उससे किसान की अपेक्षा आइतिये को अधिक लाभ होता है । और , बिचौलिये किसान और आढ़तिया दोनों ओर से अपना कमीशन कमाते है । इसके अलावा माप और तौल के गलत बट्टो किसान लूटे जाते हैं और यह कहकर कि उनकी फसल घटिया किस्म की है , उन्हें कम मूल्य स्वीकार करने को मजबूर किया जाता है । किसान और अंतिम उपभोक्ता के बीच बिचौलियों की संख्या बहुत है । एक लंबी श्रृंखला है यह । फलस्वरूप , उपभोक्ता तक खाद्यान पहुंचने में यह श्रृंखला हर स्तर पर लाभान्वित होती है । लेकिन , किसान , जो मूलतः उत्पादक है , वे हर स्तर पर बिचौलियो द्वारा ठगे जाते है । इस तरह , किसानों को जो भी कीमत दलाल और आढ़तिये द्वारा मिल पाती है , उसे ही स्वीकार कर लेने को वे बाध्य होते है । खाद्यान्न की बाजार - व्यवस्था के बारे में आपने महसूस किया होगा कि कृषि बाजार में बिचौलियों की बहुत बड़ी भूमिका होती है । मूलतः , ये न तो उत्पादक है और न ही छोटे या बड़े व्यापारी के रूप में पूँजी निवेश के बल पर मुनाफा कमानेवाली श्रेणी के लोग । वस्तुतः , ये बाजार - व्यवस्था के गुणी होते हैं जो माँग और आपूर्ति के सिलसिले में मूल्यों के उतार - चढ़ाव पर बराबर पैनी नजर रखते है । बिलकुल छोटे स्तर के व्यापारी के रूप में कम पूँजी निवेश के बल पर भी ये कृषि विपणन में लाभ कमा ही लेते हैं - बेचनेवाले और खरीदनेवाले दोनों से । र 89 ( छोटे शहरों ) और बड़े नगरों में अवस्थित आढ़तियों को भी अपने विश्वास में रखते हैं । किसानों और आढ़तियों , दोनों को उनके हित का ध्यान दिलाते रहते हैं कि कब उन्हें खाद्यान्न या अन्य उत्पाद बेचना - खरीदना चाहिए , अर्थात कैसे उन्हें अधिक लाभ मिल पाना संभव हो सकेगा । इस चतुर - चालाक प्रयास में बिचौलिये प्रायः लाभ की ही स्थिति में होते हैं । अधिक मुनाफे पर किसान को अन्न बेचने की बात बताकर वे उनसे भी कुल बिक्री - मूल्य से कमीशन ( दलाली ) उगाह लेते हैं और दूसरी ओर अपनी सामर्थ्य की बदौलत छोटे या बड़े आढ़तियों से भी खरीदी गई कुल रकम में , सस्ती दर पर खाद्यान्न दिलाने की बात पर , अपनी दलाली का मेहनताना भी । इस प्रकार , पूरी बाजार - व्यवस्था को बिचौलिये बहुत सक्रिय रूप से प्रभावित करते हैं । मंडी और MSP-- किसानों को नुकसान से बचाने के लिए भारत सरकार ने MSP की व्यवस्था की है जिसका अर्थ होता है न्यूनतम समर्थन मूल्य । सरकार किसानों को उनकी उपज के लिए उपज-खर्ज का डेढ़ गुना भुगतान करती है । लेकिन देखा जाता है कि सरकार द्वारा दिए जाने वाले इस सुविधा का लाभ भी उचित किसानों को नहीं मिलता है । बिचौलिय इसका लाभ उठा ले जाते है । |
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