Indian farmer and his livelihood भारतीय किसान और उसकी आजीविका
कृषि देश को एक इंजन की तरह चलाती है। इसका मतलब है कि किसान देश का वास्तविक आधार है। जो लोग खेतों से अनाज उगाते हैं, फल - सब्जियाँ उगाते हैं, पशुपालन करते हैं और उनसे दूध और दही का उत्पादन नहीं करते हैं उन्हें आम तौर पर किसान कहा जाता है। हम जानते हैं कि देश में और हमारे राज्य बिहार में तीन प्रकार के किसान हैं - बड़े किसान, मध्यम किसान और छोटे किसान।
आज आधुनिक खेती के तरीकों के लिए बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। इसलिए, अब किसानों को पहले की तुलना में अधिक धन की आवश्यकता है। अधिकांश छोटे किसानों को पूंजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है। वे बड़े किसानों से या गाँव के साहूकारों से या उन व्यापारियों से कर्ज लेते हैं जो खेती के माध्यम से नकदी फसल खरीदते हैं। ऐसी वस्तुओं पर ब्याज की दर बहुत अधिक है। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। छोटे किसानों के विपरीत, मध्यम और बड़े किसान खेती से बचते हैं। इस तरह, वे आवश्यक पूंजी की व्यवस्था करते हैं।
भारतीय कृषक संसार में ऊषा की लालिमा फैलने से पूर्व ही किसान एक सबग प्रहरी की भांति जग उठता है । घर में नहीं जहाँ उसका पशुधन होता है वह वहीं सोता है , न ठसे पत्नी से प्रेम है और न बच्चों को ममता । उठते ही पशुधन की सेवा , इसके पश्चात् अपनी कर्मभूमि खेत की और उसके पैर स्वयं ही उठ जाते हैं । खेत पर ही तो ऊषा उसका अभिनन्दन करती है । अब वह संध्या के अन्धकार तक घर नहीं लौटेगा । उसका स्नान , उसका भोजन और विश्राम , जो कुछ भी होगा वह एकान्त वनस्थली में । बातों के लिये बैल हैं , हल हैं । जब मन आया उन्हीं से हँस बोल लिया । धन्य है रे साकार मूर्ति है , तू त्याग और तपस्या का चिर संचित वैभव है । मौन तपस्वी तूने संसार के सभी वीतराग संन्यासियों में पृथक् स्थान प्राप्त किया है । तू सन्तोष को आज से ३० वर्ष पहले के किसान में और आज के किसान में कुछ अन्तर हुआ है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् किसान के बहते आँसू कुछ रुके हैं । अब कभी - कभी उसके मलिन मुख पर भी मुस्कराहट दौड़ने लगी है । जमींदारों के शोषण से तो उसे सर्वथा मुक्ति मिल चुकी है , परन्तु फिर भी वह संसार का अन्नदाता आज भी पूर्णरूप से सुखी नहीं है । आज भी पच्चीस प्रतिशत किसान ऐसे हैं , जिनके पास दोनों समय खाने के लिए भर पेट भोजन नहीं , शरीर ढकने के लिए स्वच्छ और मजबूत कपड़े नहीं । उनकी गृह - लक्ष्मियाँ फटी हुई घोतियों में अपनी लज्जा को छिपाये जीवन यापन करती हैं । टूटे - फूटे मकान और टूटी हुई झोंपड़ियाँ आज भी उनके प्रासाद बने हुए हैं । मूसलाधार वर्षा हुई , छत बैठने लगी , दीवार गिरने लगीं किसान क्या करता , आकाश की ओर देखकर रो दिया और उस अज्ञात से , अपनी रक्षा की याचना करने लगा , किसान की जीवन सहचरी दरिद्रता मानो आज भी उसका साथ छोड़ने को तैयार नहीं । अन्य देशों के कृषक सुखी हैं , सम्पन्न हैं , धन - धान्य युक्त हैं , जीवन को सुखमय बनाने के सभी साधन उन्हें उपलब्ध हैं । उन देशों के नागरिकों और कृषकों के ज्ञान , मान , धन , सम्पत्ति सभी में समानता है । वे सुरक्षित होते हैं और सुसंस्कृत भी परन्तु भारतीय किसान अधिकांश रूप से अभी सुसम्पन्न नहीं हैं । सम्भव है , निकट भविष्य में उनकी स्थिति में कुछ और अधिक सुधार हों क्योंकि सरकार उनकी उन्नति के लिए निरन्तर प्रयलशील है । मैथिलीशरण जी ने एक बार लिखा था ' शिक्षा की यदि कमी न होती , तो ये गाँव स्वर्ग बन जाते । ' ग्रामीणों की निरक्षरता उनके जीवन के लिये अभिशाप है । बिना शिक्षा के मनुष्यों का मानसिक विकास नहीं होता और वह कूप - मन्डूक बना रहता है । शिक्षित मनुष्य समाज के उत्थान में सहयोग देते हैं परन्तु जो अशिक्षित होते हैं , उन्हें न समाज से काम है न राष्ट्र से
0 Comments