हमारी पृथ्वी और इसकी रचना Our Earth
आकार की दृष्टि से पृथ्वी का स्थान सौर परिवार में पाँचवाँ है , अर्थात इससे बड़े चार ग्रह है । दूसरे ग्रहों की तरह यह गोल है , किंतु ध्रुवों पर कुछ चपटी है ( नारंगी के समान ) । पृथ्वी की गोलाई को पृथ्व्याकार या भू - आभ ( geoid ) कहना अधिक उपयुक्त है । गोल वस्तु के पूरे घेरे को परिधि कहते हैं । पृथ्वी की परिधि 40 हजार किलोमीटर है । गोलाकार पृथ्वी को दो गोलार्डों में बाँटा जा सकता है - उत्तरी और दक्षिणी या पूर्वी और पश्चिमी । उत्तरी और दक्षिणी गोलार्डों में विभक्त करनेवाली रेखा को ' विषुवत रेखा ' कहा गया है ।
पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी दोनों सिरों को एक कल्पित रेखा से मिलाया जाए ( केंद्र से होकर ) , तो उसे पृथ्वी का ' अक्ष ' कहेंगे । अक्ष और विषुवत रेखा सदा एक - दूसरे से समकोण बनाते हुए मिलते हैं । वास्तविकता यह है कि पृथ्वी का अक्ष लंब रेखा के रूप में न होकर कुछ झुका हुआ है । हमारा चाँद , जो पृथ्वी का उपग्रह या सहचर है , पृथ्वी से 3,84,000 किलोमीटर की दूरी पर है । निकटता के कारण ही यह बड़ा दिखाई पड़ता है । यह सूर्य से प्रकाशित होता है । इसके परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में करीब सवा सेकंड का समय लगता है । यह 27 दिन 8 घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है पृथ्वी की दैनिक एवं वार्षिक दो गतियाँ है । हमारी पृथ्वी भी लटू की तरह सदा घूमती रहती है । इसमें वास्तविक कील नहीं , काल्पनिक कील है , जिसे हम अक्ष ( axis ) कहते है ( चित्र 2.2 ) । इसका उत्तरी सिरा उत्तरी ध्रुव है और दक्षिणी सिरा दक्षिणी ध्रुव । इन दोनों ध्रुवों के बीच पृथ्वी के केंद्र से होकर पृथ्वी की काल्पनिक कील ( या धुरी ) गुजरती है । इस कील या धुरी पर एक पूरा घूर्णन ( rotation ) कहलाती है । घूर्णन का अर्थ है अपनी जगह पर पूरी तरह घूम जाना । एक घूर्णन की अवधि में पृथ्वी का एक दिन - रात पूरा होता है । पृथ्वी की इस गति में पूरा एक दिन - रात लगता है , अतः इसे ' दैनिक गति ' कहते हैं । घूमती हुई पृथ्वी सदा आगे की ओर बढ़ती है । आगे बढ़ने की गति प्रति घंटा । लाख किलोमीटर है । इस गति से आगे बढ़ती पृथ्वी लगभग 365 दिन 6 घंटे में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेती है । पृथ्वी की यह गति परिक्रमण ( revolution ) कहलाती है । परिक्रमण का अर्थ है चारो ओर घूमते हुए फेरा लगाना । पृथ्वी की यह गति एक वर्ष में पूरी होने के कारण वार्षिक गति कहलाती है । आगे बढ़ती हुई पृथ्वी जिस पथ का अनुसरण करती है या जो .. पथ अपनाती है उसे कक्ष या कक्षक ( orbit ) कहते है । वह समतल जो कक्ष के द्वारा बनाया जाता है , उसे कक्षीय समतल कहते हैं । पृथ्वी का अक्ष , कक्षीय समतल के साथ 66 / 2 ° का कोण बनाता है । यह कक्ष पूर्ण गोलाकार न होकर अंडाकार है ( चित्र 2.3 ) , जिसे हम दीर्घवृत्ताकार ( दीर्घवृत्त या ellipse की तरह ) कहेंगे ।
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