प्रागैतिहासिक काल की दृष्टि से बिहार
प्रागैतिहासिक काल की दृष्टि से हमारा राज्य बिहार काफी समृद्ध रहा है । बिहार के मुंगेर जिले में स्थित पैसरा आरंभिक मानव से संबंधित स्थल है । यहाँ फ्रांस में पाए गए आरंभिक मानव के औजारों की तरह औजार मिले हैं । संभवतः , यह आवास तथा उद्योग - स्थल था ।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण , पुरातत्व निदेशालय ( बिहार सरकार ) काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान ( पटना ) , प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग ( पटना विश्वविद्यालय ) तथा गणेश दत्त महाविद्यालय , बेगुसराय के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग द्वारा खुदाई करवाये गये बहुत - से स्थलों से प्रागैतिहासिक सामयियों उपलब्ध हुई है ।
ऐसे स्थलों में सारन जिलांतर्गत चिराद , पुराने गया जिला के ताराडीह एवं सोनपुर , पटना जिलांतर्गत मनेर , पूर्व मुजफ्फरपुर जिला के वैशाली आदि काफी महत्वपूर्ण है । इस कार्य को करवाने में हमारे बिहार राज्य के पुरातत्वविदो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । बिहार के प्रागैतिहासिक स्थलों में चिरांद का ज्यादा महन्त । यह पटना - छपरा मार्ग पर डोरीगंज घाट के निकट स्थित है । इस स्थल की खुदाई ने नवपाषाणयुगीन लोगों के वासस्थान के संद में चली आ रही पूर्व की अवधारणा को खारिज कर दिया । इस स्थल की खुदाई से पूर्व तक इस संदर्भ में यह आम मान्यता रही थी कि नवपाषाणकालीन लोग पहाड़ी गुफाओं एवं कंदराओं के इर्द - गिर्द रहते थे , परंतु यहाँ के प्रथम काल ( नवपाषाणयुगीन ) से उपलब्ध पत्थर एवं हड्डी के औजारों ने इस तथ्य को पहली बार उजागर कर दिया कि हमारे नवपाषाणकालीन पूर्वज नदियों के किनारे भी रहा करते थे ।
पत्थर एवं हड्डी के ये उपकरण काफी विकसित एवं धारदार हैं , जिनसे इस काल में यहाँ बस रहे लोग अपनी आवश्यकतानुरूप कार्यों को काफी बारीकी एवं प्रभावोत्पादक ढंग से अंजाम देते थे । विशेषकर , यहाँ के हड्डी के औजार देखने योग्य हैं । इनके अतिरिक्त इन पूर्वजों के बरतन , साज - शृंगार की सामग्रियाँ तथा मनके भी मिले हैं । इन सभी सामग्रियों के अवलोकन से यह झलक मिलती है कि चिराँद के हमारे नवपाषाणयुगीन पूर्वज काफी अच्छे ढंग से अपने जीवन का निर्वाह करते थे ।
चिराँद में ताम्र पाषाणयुगीन लोगों के बसने के प्रमाण भी मिले हैं , जिनसे संबंधित सामग्रियाँ यहाँ मानव के भौतिक दृष्टि से आगे बढ़ने की बात कहती है । उत्खनन से ज्ञात होता है कि यहाँ के निवासी खेती करते थे तथा काला पालिश किए चित्रित धूसर बरतन भी बनाते थे । इस काल की सामग्रियाँ सोनपुर , मनेर एवं ताराडीह से भी मिली हैं ।
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