विज्ञापन विभिन्न प्रकार के उत्पादों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं और इसके लिए उनकी गुणवत्ता का बखान करते हैं और उनके पक्ष में सकारात्मक विवरण देते हैं । यह इसलिए कि अधिसंख्य लोग उन्हें खरीदने में रुचि लें । विज्ञापनों की बारंबारता और उनके प्रचार के साधन एवं उनकी शैली इतनी सुनियोजित होती है कि उपभोक्ता उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते । कभी - कभी तो ऐसा होता है कि बहुत - से लोग नहीं चाहते हुए भी या ऐसे उत्पाद को खरीदने में तत्क्षण अक्षम होते हुए भी उनकी खरीद की जुगत में लग जाते हैं । लगता है , हम बाजार में विज्ञापनों के आधार पर चीजें खरीदते हैं । एक तरह से हम चीजें नहीं , विज्ञापन खरीदते हैं । आज जीवन पर विज्ञापन का यही नया शासन है । यही कारण है कि संचार माध्यम विज्ञापनों के प्रभावी माध्यम हो गए हैं । संचार माध्यम जिन सूचनाओं और सामाजिक , राजनीतिक मुद्दों को उठाने की भूमिका निभाते हैं , उससे कहीं ज्यादा प्रमुख हो गए हैं विज्ञापन । यही आज का समय है । विज्ञापन की प्रकिया की
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हम जान लें कि यह ' ब्राडिग ' है क्या ? सामान्यत , ब्राडिग ' का अर्थ है किसी उत्पाद पर किसी विशेष नाम या चिह्न की मुहर ( ट्रेडमार्क ) लगाना । जो सामान खुले में विकते हैं उनका अलग - अलग नाम होता है , ब्रांड नहीं । किसी उत्पाद को बाजार में प्रचलित अन्य उत्पादो से भिन्न दिखलाने के लिए ' ब्राडिग किया जाता है । जब कोई उत्पाद पैकेट - बंद हो जाता है तो उसका एक आकर्षक , अर्थपूर्ण नाम दिया जाता है । उत्पादो के नाम देने की यह प्रक्रिया ही ' ब्रांडिंग है । दरअसल , बाय या दागना ' पशुपालन की जरूरत से उभरा हुआ शब्द है । बड़े - बड़े चरागाहों में भिन्न - भिन्न मालिको के पशु एकसाथ चरा करते थे । इन कारणों से उनको पहचानने की समस्या होती थी । मालिकों ने इस दिक्कत का समाधान ढूंढ निकाला । वे गर्म लोहे की मदद से पशुओं पर अपने अलग - अलग चिह्न दागने लगे । यही बाडिग कहलाया । कोई उत्पाद अपनी पहचान के नाम से ' ब्रांड ' बन जाता है । फिर , उसी नाम से वह बेचा - खरीदा जाता है । विज्ञापन के लिए उत्पाद के ब्रांड नाम की जरूरत होती है ।
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