आम : फलों का राजा Mango: King of fruits
भारत फलों के बादशाह आम का घर है । किस्में - मुख्यतः आम दो तरह के होते हैं - कलमी और बीजू । कलम लगाकर तैयार किया हुआ पेड़ कलमी और फल की गुठली ( बीज ) से पैदा हुआ पेड़ बीजू कहलाता है । बीजू की सैकड़ों किस्में हैं । इसमें फल मीठे भी होते हैं और खट्टे भी । सिमरिया नाम का एक बीजू बिहार में होता है जिसमें रस ही रस भरा होता है । वृक्ष संपदा के राष्ट्रीय स्तर पर जानेमाने विद्वान राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने एक बार बीजू किस्मों की गिनती की थी तो 180 किस्म के बीजू पाए गए थे - वह भी उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर , दरभंगा , वैशाली तथा सीतामढ़ी में । आम की किस्मों का कोई अंत नहीं है । सैकड़ों किस्म के आम पाए जाते हैं । इनमें मालदह , बंबइया , लँगड़ा , लखनऊ का सफेदा , उत्तर प्रदेश का चौसा तथा दशहरी , मुर्शिदाबाद का जरदालू और हाजीपुर का सुकुल प्रसिद्ध है । आज बाजार में बिहार का दुधिया मालदह , जरदालू और सुकुल अपनी खास पहचान बना चुका है । आम की बाजार श्रृंखला - वर्ग 7 की पाठ्यपुस्तक के ' खाद्यान्न एवं व्यावसायिक फसलें ' शीर्षक अध्याय में वर्णित बातों का स्मरण करें । आम की बाजार - व्यवस्था से यह बात स्पष्ट होती है कि मंजर लगने के समय ही किसान से करार करनेवाले व्यापारी फल तैयार हो जाने पर अपेक्षाकृत अधिक लाभ कमाते हैं और फल मंडी के थोक व्यापारी उससे भी अधिक । फिर , खुदरा बेचनेवाले अपने श्रम की बदौलत लाभ का कुछ अंश पा लेते हैं , क्योंकि उनकी पूँजी कम होती है और गाँवों - शहरों में घूम - घूमकर या एक जगह बैठकर आम बेचना एक श्रमसाध्य रोजगार है । फिर भी , एक सामान्य किसान की तुलना में छोटा - से - छोटा दुकानदार भी बेहतर कमाई कर पाता है । यहीं पर हमें आम के प्रसंस्करण उद्योग के स्थापित करने की जरूरत महसूस होती है । यदि इस फल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में सरकार योजनाबद्ध तरीके से प्रसंस्करण औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करती है तब खाद्यान्न की खेती पर किसानों की निर्भरता कम होगी और उनकी आर्थिक समुन्नति संभव हो सकेगी ।
भारतीय किसान और उसकी आजीविका
साथ ही , कुटीर - उद्योग के अंतर्गत पंचायत स्तर पर आम के विविध तरह के अचार तैयार करने की ओर ग्रामीण महिलाओं को उत्प्रेरित , संगठित और प्रशिक्षित किया जा सकता है । इससे बाजार में लोगों को सस्ती दर पर उम्दा किस्म के विश्वसनीय आम के उत्पाद मिल सकेंगे और ग्रामीण किसान भी फलों की खेती करने के लिए और प्रोत्साहित होंगे । व्यापारियों के शोषण से उनकी मुक्ति होगी और उन्हें अपने श्रम का सही लाभ प्राप्त हो सकेगा ।
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