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आर्यभट : महान ज्योतिषज्ञ और गणितज्ञ शून्य का आविष्कारक Aryabhata: the great astrologer and mathematician, inventor of the zero

  आर्यभट : महान ज्योतिषज्ञ और गणितज्ञ शून्य का आविष्कारक  Aryabhata: the great astrologer and mathematician, inventor of the zero 

                                                      


अब धरती का मानव चाँद पर पहुँच गया है । मनुष्य चाँद पर पहुँचने के बाद अब दूसरे ग्रहों पर भी पहुँचने की कोशिश कर रहा है । आदमी ने इतनी उन्नति कैसे की ? जाहिर है कि यह दस या सौ साल में नहीं हुआ है । हजारों सालों से आदमी आकाश के ग्रह - नक्षत्रों का अध्ययन करता आया है । पुराने जमाने के जिन विद्वानों ने आकाश का गहरा अध्ययन किया है , उनमें आर्यभट का स्थान बहुत ऊँचा है ।

पुराने जमाने में ज्योतिष और गणित की पढ़ाई साथ - साथ होती थी , इसलिए हमारे देश की पुरानी पुस्तकों में ज्योतिष और गणित की बातें साथ - साथ बतलाई गई हैं । आर्यभट जितने बड़े ज्योतिषी थे , उतने ही बड़े गणितज्ञ भी । उन्होंने ' आर्यभटीय ' नाम से एक पुस्तक लिखी है । इस पुस्तक में गणित के साथ - साथ ज्योतिष की भी चर्चा है । यह पुस्तक है तो छोटी , लेकिन इसमें आर्यभट ने गणित और ज्योतिष की वे सारी बातें लिख दी हैं , जो उनके समय तक खोजी गई थीं । उन्होंने यह पुस्तक संस्कृत भाषा में लिखी है । पुराने जमाने में हमारे देश में ज्योतिष और गणित के ग्रंथ पद्य में लिखे जाते थे क्योंकि पद्य को आसानी से कंठस्थ किया जा सकता है । आजकल जिस प्रकार विद्यार्थी फॉर्मूलों यानी सूत्रों को याद करते हैं , उसी प्रकार पुराने जमाने के विद्यार्थी कविता को कंठस्थ कर लेते थे । आर्यभट की लिखी हुई आर्यभटीय पुस्तक भी कविता में ही है । पुराने जमाने में हमारे देश में जीवनियाँ लिखने का रिवाज नहीं था । पंडित लोग अपनी पुस्तकों में अपने बारे में बहुत कम जानकारी देते थे । यही कारण है कि हम अपने प्राचीन वैज्ञानिकों और विद्वानों के जीवन के बारे में बहुत कम जानते हैं । आर्यभट ने अपनी पुस्तक के एक श्लोक में यह बताया है कि उन्होंने कुसुमपुर शहर में इस पुस्तक की रचना की  आज के पटना शहर को पुराने जमाने में पाटलिपुत्र कहते थे । इसी पाटलिपुत्र का एक नाम कुसुमपुर भी था ; अतः आर्यभट पुराने पटना शहर के निवासी थे । कुछ विद्वानों के अनुसार , आर्यभट अश्मक जनपद के निवासी भी माने जाते हैं । यह अश्मक जनपद गोदावरी और नर्मदा नदियों के बीच का प्रदेश था । आर्यभट अपनी पुस्तक के एक श्लोक में बताते हैं कि यह पुस्तक उन्होंने 23 साल की आयु में लिखी है । उस समय ईसवी सन् का 499 साल चल रहा था । 499 से 23 घटा देने पर हमें आर्यभट का जन्म - वर्ष ज्ञात हो जाता है । अर्थात आर्यभट का जन्म 476 ई ० में हुआ था । तब से आज तक लगभग डेढ़ हजार साल का लंबा समय गुजर गया है । आर्यभट के समय चंद्रगुप्त और समुद्रगुप्त - जैसे शासकों का काल समाप्त हो चुका था । उस समय उत्तर - पश्चिम भारत पर हूणों के हमले हो रहे थे । आर्यभट के जीवन के बारे में बस इतनी ही जानकारी मिलती है । आर्यभट की आर्यभटीय पुस्तक पर ' गागर में सागर भर देने वाली कहावत लागू होती है । इस पुस्तक में कुल मिलाकर 121 श्लोक हैं । पुस्तक चार भागों में बाँटी गई है । ये चार भाग हैं- गीतिकापाद , गणितपाद , काल - क्रियापाद और गोलपाद । गीतिकापाद में कुल 13 श्लोक हैं । पहले श्लोक में मंगलाचरण है । ये श्लोक गीतिका छंद में हैं । इसीलिए इस भाग को गीतिकापाद कहते हैं । इन श्लोकों में ज्योतिषशास्त्र की कुछ बुनियादी बातों कीजानकारी दी गई है । इस पाद का दूसरा श्लोक बड़े महत्व का है । इसमें आर्यभट ने गणना की एक नई पद्घति की जानकारी दी है । पद्य में लिखी जाने वाली पुस्तकों में गणित के अंकों को लिखना संभव नहीं है । यदि संख्याओं को शब्दों में लिखा जाए तो पद्य बड़े हो जाते हैं । ज्योतिषशास्त्र में बड़ी - बड़ी संख्याएँ लिखनी पड़ती हैं । इसलिए संख्याओं को संक्षेप में लिखने के लिए आर्यभट ने एक नई पद्धति का आविष्कार किया । उन्होंने वर्णमाला के सारे अक्षरों के लिए संख्यामान निश्चित कर दिए । अब किसी भी संख्या को अक्षरों में लिखा जा सकता था । अंकों या संख्याओं को इस प्रकार अक्षरों में लिखने की पद्धति को ' अक्षरांक - पद्धति ' कहते हैं । आर्यभट के पहले ही शून्य की खोज हो चुकी थी । इस शून्य और 1 से 9 तक के अंकों की सहायता से सारी संख्याओं को लिखने की पद्धति का भी आविष्कार हो चुका था । पर आर्यभट को अपनी पुस्तक पद्य में लिखनी थी । इसीलिए उन्होंने एक नई अक्षरांक पद्धति का आविष्कार किया । इस पद्धति में बड़ी - बड़ी संख्याएँ छोटे - छोटे शब्दों से लिखी जा सकती थीं ; जैसे - ख्युङ् -43,20,000 । आर्यभट के बाद हमारे देश के दूसरे गणितज्ञों ने भी अक्षरांक - पद्धतियों का इस्तेमाल किया । आर्यभटीय पुस्तका के गणितपाद में कुल 30 श्लोक हैं । इतने ही श्लोकों में आर्यभट ने अंकगणित , 


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