चम्पारण देव भूमि है Champaran is Dev Bhoomi
हमलोग चम्पारण में वास करते है । यह भूमि विशिष्ट देव भूमि है जिसके पश्चिम में साक्षात् नारायण को उत्पन्न करने वाली शालो ग्राम या नारायणी नाम से विख्यात महानदी है जो पौराणिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से शलिग्राम भगवान को प्रकट करती है । जहाँ इसके मध्यभाग में भगवान शंकर के जटाजूट गंगा आबद्ध हो गयी थी . इस पर्वत शिखर से एक धारा प्रवाहित होकर शिखरणि ( सिकरहना ) तथा वृद्धगण्डकी के रुप में चम्पारण के मध्य भाग से प्रवाहित होती है । इसके पूर्व भाग में सरस्वती स्वरुप वाङ्मनी की धारा जो भगवान पशुपतिनाथ , मुक्तिनाथ के द्वारा से प्रवाहित होकर गंगा में तथा आगे जाकर समुद्र में समाहित होती है । विष्णुप्रिया जगतजननी जनक सीता की जन्मभूमि पुण्डरिक आश्रम पुनौरा में इसी बागमती के पूर्व भाग में निकटवर्ती प्रदेश में उनका प्रार्दुभाव हुआ है जहाँ भी उस देव भूमि में रखी गयी थी आज सीतामढ़ी नाम से विख्यात है । मिथि नाम के राजा ने मिथिला प्रदशे की राजधानी को मिथिला नाम से अलंकृत किया था । इसीलिए मिथिला का पश्चिम छोर चम्पारण्य मिथिलान्र्तगत है । यह प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है . नारायणी के तटवर्ती प्रदेश में जहाँ संन्यासियों की जीवित समाधि सिद्वस्थली के रुप में वर्तमान है । वहाँ एक दिव्य आश्रम जो परम तपस्वी वेद वेदांग शास्त्रों के उद्भट महा विद्वान शब्द ब्रह्म के निष्णात पूज्य चरण 108 श्री शारदा प्रसाद शर्मा जी के द्वारा श्री कृष्ण रघुनाथ ब्रहचर्य आश्रम चिन्तामणि मठ के नाम से वह वेदांग शास्त्रों के सिद्ध साधक तपस्विों के उद्गम स्थान वह आश्रम तपोनिष्ठ रहा है । इसी आश्रम का प्रार्दुभाव आचार्य श्री जिनके कूल में दस पीढ़ी पूर्व से ही महा विद्वान तपस्वी उत्पन्न होते रहे है । वहीं कमल कुंआ नाम से विख्यात तपोभूमि में भी शारदा प्रसाद शर्मा जी आठ विषय के आचार्य बिहार और बंगाल से स्वर्ण पदक प्राप्त तपस्वी की कृपा से उनके ज्ञान ज्योति को फैलाने वाले तपस्वीगण उनके शिष्यों में आचार्य रमानन्द शास्त्री ब्रह्मर्षि पं 0 शुकदेव मिश्रा जी , आचार्य रामनन्दन पाण्डेय श्री आचार्य हरिश्चन्द्र शर्मा वगैरह उनकी ज्ञान ज्योति के प्रकाशक उसी तपोभूमि से प्रादुर्भुत हुये है । उनके पूर्वभाग में अत्यन्त प्राचीन भगवान शंकर सोमेश्वर नाथ जो अरण्य राज ( अरेराज )में अवस्थित है । इनकी महिमा का गुणगान पुराणों में भी वर्णित है वहाँ पर भगवान बुद्धका स्नूप लौरिया में है।ऐतिहासिक काल में राजाओं के युद्ध होने के कारण संग्रामपुर नाम से विण्यात स्थान भी उसी के समीप पयती क्षेत्र में है । भगवान बुद्ध का तपोनिष्त स्थान केसरिया में बाबा केसर नाथ के समीप विश्वप्रसिद्ध स्ता है । यह चम्पारण गाँधी का प्रथम कर्मभूमि है जहाँ से उनकी ख्याति बदी है । आश्रम के म पृदावन में मोहन जो निलहे का इतिहास और अत्याचार नामक अभिनय के रुप महात्मा गाँधी को कर्मभूमि बापूधाम चम्पारण जो चन्दरहिया मोतिहारी में आज भी वहाँ समारक रुप में दृष्ट होता है । चम्पारण के उत्तर पश्चिम दिशा में भगवान वाल्मीकि का प्राचीन आश्रम है । जहाँ साक्षात् भगवती नरदेवी अपनी दिव्यता से उस स्थान का चमत्कृत करती है । वहाँ पर शरेपा मन की एक पुष्करिणी है । जो जम्बू वृक्ष पर माता वनदेवी को विशेष कृपा से उस जलका महत्व इतना है कि जिसे पीकर मनुष्य समस्त उदर रोगों से मुक्त होता है । वहाँ वन्य प्रदेश अनेक जड़ी - बूटी का है जहाँ के आरोग्य बढेक नव औषधियों से मानव का पूर्ण कल्याण होता है । पूर्वमाग में वोड़गमनी के तटवर्ती प्रदेश में भूनेश्वरनाथ बहुत प्राचीन मंदिर जो देवकुलो स्थान में विख्यात है । जहाँ सभी देवताओं का समूह एकत्र होकर जगदम्या सीता के जन्मभूमि में मिथिला प्रदेश का कल्याण देवगण करने आये है । ऐसा इतिहास में वर्णित है । चम्पारण देवभूमि के अतिरिक्त साधको को भी तपोभूमि रही है । पदण्डे तब्रह्माण्डे के अनुसार जो कुछ शरीर में है वही ब्रह्मांड में है । अर्थात् यदि इह अस्ति तदड़ग नेत्र अन्य इह अस्ति न तत्र वचित् जो इस शरीर में नहीं है । वह कही भी नही है । इस तरह अक्षर ब्रह्म उपासक और षट्चक्र से द्वादश चक्र के साक्षात् करने वाले इस तपोभूमि में पकट हुए है । परा पश्यन्ति मध्यमा वैखरी नाद के विशिष्ट जानकार स्फोट् ब्रह्म के मार्ग दर्शक भूगोल समोग के महानसमोग के महान् साधक इसी तपोभूमि में प्रकट हुए है । आज भी हमारी कामना है कि यह चम्पारण की तपोभूमि जो भगवान् बुद्ध के सत्य और अहिंसा तथा भगवान् वाल्मीकि की तपोभूमि अनेक देवों की तीर्थभूमि अपने प्रभा से चम्पारण के जन - जन के मानस में ज्योति प्रकाश भर दें । जिसे यहाँ की जनता ईर्ष्या राग द्वेष से रहित होकर सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा काश्चित् दुःख मा भवेत् का अर्थ केवल मानव नहीं प्राणि मात्र के लिए सोचे समझे और करे ।
0 Comments